Saturday 16 February 2013

गुलाब

कहते हैं पहला प्यार भुलाये नहीं भूलता, और यादें ज़िन्दगी से कब्र तक सबसे वफादार साथी होती हैं। जितनी मिलती हैं , उतना ही हम छोड़ भी जाते हैं ..शायद!!

तेरे अलफाज़ बह गए ,
वक़्त की लहर में ,
जो ऊंची, छोटी,
हलकी, सूखी,
होती थीं।

काली चाय की
खाली केतली सा,
रह गया हूँ मैं,
चाय के बाद ,
कालापन नहीं जाता
अब

धुंआ उठता था
तुम्हारी यादों का,
लेकिन
अब चूल्हे की आग
ठंडी हो चली है

कब्र के ऊपर
गुलाब उग आये हैं अब ..
लोग कहते हैं,
गुलाब दफ्न नहीं होते,
लोग कहते हैं,
गुलाब दफ्न नहीं होते,
नहीं होते .....

Wednesday 13 February 2013

कुछ तेरा कुछ मेरा

            
          दिल कमबख्त दुनिया का सबसे खतरनाक हिस्सा होता है, और मुसीबत तब पैदा होती है जब हर इन्सान के पास एक अदद दिल पाया जाने लगता है. जैसी की इंसानी फितरत है, दूसरे की चीज़ों के प्रति आकर्षण से बहुत जल्दी ग्रसित हो जाता है. यही हाल दिल के साथ भी है. दूसरे को देख कर उसे पाना चाहता है, गोया इन्सान न हुआ कोई सामान हो गया. अब दिल तो ठहरा दिल , दिमाग से कोई वास्ता नहीं है. क्या करे बेचारा. अजीब कशमकश में उलझा रहता है. तुम हो. तुम नहीं हो, तुम हो सकते हो, तुम नहीं हो सकते हो , वगैरह वगैरह .


(चित्र:  आसमान, कल्पना और काल्पनिक आसमान ) 

 मैंने अक्सर महसूस किया है,
तेरे और मेरे दरमियान
कुछ तो है
कुछ है जो तेरा है,
कुछ है जो मेरा है
वो कुछ तो है

शायद वो रात है,
जिसमें चाँद निहारता है तुम्हे,
और  मैं मीलों दूर से
उस चाँद को,

शायद वो हवा है,
जो मेरी साँसों से होती हुयी,
तुम्हारे चेहरे को सिर्फ छू कर
गुज़र जाती है ,

शायद वो खुदा है ,
तुझमें दिखता है,कभी
मंदिर में , मस्जिद में,तुझ सा
बस नही हो पाता,

बहुत कुछ है तेरे- मेरे बीच
कुछ है जो अँधेरा है,
कुछ है जो सवेरा है,
कुछ तो है
कुछ है जो तेरा है,
कुछ है जो मेरा है
वो कुछ तो है



 

Monday 4 February 2013

डायरी

अक्सर लोगों को बताते सुनता था , देखता था  और देखते देखते खुद भी शौक पाल बैठा एक डायरी का। लगभग दस बारह साल पुरानी बात है, मैं दसवीं या नौवीं में था शायद। पापा की लाई हुयी एक ठीक ठाक सी डायरी मेरे हाथ लग गयी, और यूं शुरू हुआ डायरियों के साथ मेरा रिश्ता। चोरी से। पापा को लगता था अगर बेटा डायरी लिखता है तो ज़रूर कोई बात है जो बेटा छुपा रहा है या बताना नहीं चाहता। ऐसा नहीं था की वो मुझ पर शक करते थे , लेकिन उन्हें इस बात का पूरा ख्याल रहता था कि वो और मम्मा मेरे सबसे अच्छे राजदार बने रहे। खैर , सिलसिला चलता रहा, डायरियां भरती गयीं, वक़्त चलता रहा। कुछ लोग मिले , कुछ फिसलते गए हाथों से, ....और आज पुरानी डायरियों को देखता हूँ तो सिर्फ यादें ही ज़हन में नहीं आतीं बल्कि हर एक लम्हा रूबरू हो जाता है , एक फिल्म की तरह।
फ़िलहाल ..... वैलेंटाइन वीक आने वाला है ... थोडा सा रूमानी हो जाते हैं !!


पुरानी सी डायरी,
उसमें रखा वो फूल,
जब देखता हूँ उन्हें,
तुम तक पहुँचता हूँ,
जहां तुम दरवाज़े से
मुझे लौटा कर
आवाज़ लगाती हो,
फिर धीमें से कानो में
फुसफुसाती हो
सूखे फूल हैं,
सिर्फ डायरी के ही काम आएंगे
यादें संजोने के लिए,
बनाने वाले ने भी,
क्या खूब चीजें  बनायीं है ,
एक डायरी , और ,एक तुम 
एक वक़्त समेट लेती है ,
और एक मुझे समेट लेती है ,
तुम आज भी
मेरी डायरी में कैद हो ,
और मैं तुम में ,
जो निकल आओ ,
तो यकीन आये ,
ज़िन्दगी कागजों से इतर भी है ..
ज़िन्दगी लफ़्ज़ों  के भीतर भी है ...