Saturday 13 February 2016

रंडी और उसका रंडीपन : सबसे लोकप्रिय चारित्रिक विशेषण


-अरे उसको देखो कैसे चिपक के बात कर रही है, रंडी साली..
-अरे देखती हो, लेडीज के लिए सीट खाली है लेकिन बैठी है जेंट्स वाली सीट पर, रांड कहीं की...
-पति के पीछे घर आए सेल्समेन से कैसे हँस-हँस के बात करती है, रंडीपन छिपता थोड़े न है....
-मैंने कहा मुझसे शादी कर लो तो बोली किसी और को पसंद करती है, रांड साली, आवारा..
-अरी कहाँ रह गयी थी? बाज़ार में इतनी देर लगती है भला? तेरे ससुर जी सही कहते थे.. मैं ही नहीं मानती थी.. तू तो है ही आवारा, रंडी की औलाद..

ये सारे जुमले, ये बातें कहीं न कहीं सुने ही होंगे.. बहुत कॉमन भाषा है.. हर जगह.. चाहे बड़े शहर हों या छोटे शहर, गाँव हो या क़स्बा, पढ़ा लिखा समाज हो या तथाकथित गंवारों का टोला. ये भाषा हर जगह समान अधिकार के साथ बोली जाती है. कोई भी पुरुष हो या पुरुष के “गुण” वाली स्त्री, सभी इसका प्रयोग समान अधिकार से करते हैं. निशाना कभी सामने वाली स्त्री के चरित्र पर ऊँगली उठाना होता है, तो कभी खुद को सामने वाली स्त्री के मुकाबले अधिक चरित्रवान साबित करना. कुल मिला कर मामला चरित्र पर ही टिकता है. हो भी क्यों न, रंडी एक पेशेगत विशेषण से बदल कर चारित्रिक विशेषण जो बन चुका है. मज़ेदार बात ये है कि किसी को रंडी कह कर संबोधित कहने वाले ज़्यादातर लोगों ने रंडी देखी भी नहीं होती है, जानने की बात तो दूर है. हालाँकि इसके लिए इस शब्द ने हजारों-लाखों ज़ुबानों से ले कर कई सदियों का सफ़र तय किया है.. कई अन्य शब्द भी लगभग इसके साथ चले थे, इसके जैसे मायने वाले ... छिनाल, फ़ाहिशा, वेश्या वगैरह, लेकिन ये शब्द समय के साथ सबको पीछे छोड़ता गया.

सबसे पहले इस शब्द के मायने क्या हैं.. रंडी शब्द का अर्थ है एक से अधिक पुरुषों से “सम्बन्ध” रखने वाली स्त्री. शुरुआती दौर में सम्बन्ध से तात्पर्य शारीरिक सम्बन्ध था जो कि कालांतर में “अपने” पुरुष की इच्छा के बिना बातचीत और किसी भी तरह का संपर्क रखने तक में बदल गया. भारतीय समाज में स्त्री के ऊपर किसी न किसी पुरुष का एकाधिकार रहता ही है. कभी पिता के रूप में, कभी पति के रूप में, कभी पुत्र के रूप में और कही उसके दलाल के रूप में. उसकी अपनी इज्ज़त नहीं होती है. उसकी इज्ज़त प्रत्यक्ष तौर पर उसके ऊपर “मालिकाना” हक रखने वाले पुरुष की इज्ज़त के समानुपाती होती है. यानी स्त्री अपने ऊपर अधिकार रखने वाले पुरुष के अतिरिक्त किसी और से बात व्यव्हार रखे तो लोग उसे “रंडी” बोलने में कोताही नहीं करते.. खुले दिल से उसका चरित्र संवारते हैं. रंडी शब्द शायद सबसे पहले देह व्यापार करने वाली महिलाओं के लिए इस्तेमाल किया गया होगा, जो कि मोटे तौर पर रंडुआ शब्द का स्त्रीलिंग है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है बिना स्त्री का पुरुष. इस तरह रंडी का शाब्दिक अर्थ हुआ बिना पुरुष की स्त्री, बिना “लगाम” की स्त्री.. नियंत्रणहीन स्त्री. देह व्यापार करने वाली स्त्रियाँ समाज में हमेशा में पुरुष के नियंत्रण से मुक्त रही हैं. ये बात अपने आप में अजीब लगती है कि आज़ाद और बिना पुरुष के नियंत्रण वाली स्त्री घटिया और दोयम दर्जे के व्यव्हार के अनुकूल मानी जाती रही है.

इसे बतौर वाक् अस्त्र यानी अपशब्द प्रयोग करने कि वजह शायद यही रही होगी कि पुरुष को “ऐसी” स्त्री के समक्ष झुकना पड़ता है और उसके सामने उसकी पितृसत्ता, साधारण समाज के विपरीत, घुटने टेक कर एक याचक के रूप में खड़ी नज़र आती है. पितृसत्ता वाले समाज में किसी पुरुष के लिए स्त्री के समक्ष प्रत्यक्ष याचना करना या अपने बराबर के दर्जे में खड़ा कर के लेन देन के लिए व्यव्हार करना किसी “गुनाह” से कम नहीं है, एक प्रकार से उसकी सत्ता की हार है, एकाधिकार की हार है जिसे वो आसानी से स्वीकार नहीं कर सकता, न कर पाता है. इसलिए खुद को चुनौती देने वाले हर अस्तित्व को उसने गाली का रूप दे दिया है. ऐसा भारतीय समाज में ही नहीं, वरन हर समाज में है, हर सभ्यता में है. कहते हैं न तलवार से तेज़ धार जुबान की होती है और उसका असर सीधा ज़हन पर होता है, शायद इसीलिए जहां हथियारों का प्रयोग नहीं किया जा सकता था वहाँ अपशब्द प्रयोग किये जाने लगे और चुनौती देने वाली  हर चीज़ को अपशब्द के साथ संबोधित किया जाने लगा. इसी कड़ी में रंडी शब्द ने जन्म लिया और आज जाने-अनजाने हर शख्स के लिए समान रूप से प्रयोग की जाता है.

वैसे तो रंडी शब्द मूल रूप से वेश्या या देह व्यापार में लिप्त स्त्रियों के लिए इस्तेमाल किया गया है, लेकिन इसमें भी एक पेंच है. रंडियों यानी वेश्याओं को ग़लत इसलिए माना गया है कि वो अपने देह का सौदा करती हैं. (वो बात अलग है कि खरीददार हमेशा पुरुष ही होता है और बाज़ार का सिद्धांत कहता है कि मांग ख़त्म कर दो, आपूर्ति स्वतः ख़त्म हो जाएगी), लेकिन स्त्री पर एक पुरुष का अधिकार हो ये नियम भी किसी स्त्री ने नहीं बल्कि पुरुषों ने बनाया था. स्त्री देह को शुचिता के दायरे में रखने की कल्पना पुरुष की ही थी, न कि स्त्री की. असल में स्त्री देह सबसे आसानी से उपलब्ध संपत्ति थी जिस पर अधिकार जताने के लिए किसी भी पुरुष को युद्ध नहीं करना पड़ता था. शेष अन्य संपत्तियों जैसे ज़मीन, शक्ति, सत्ता और धन के लिए अधिकार जताना आसान नहीं था. इसके अतिरिक्त अन्य संपत्तियों की अपेक्षा स्त्री देह बहुतायत में उपलब्ध था. इसलिए समय के साथ स्त्री देह ऐसी संपत्ति बनता गया जिस पर पुरुष आसानी से अधिकार जता सकता था और जिस स्त्री पर किसी का अधिकार नहीं होता था वो समाज का हिस्सा (प्रत्यक्ष रूप में) नहीं मानी जाती थी. आज भी कमोबेश यही हालात हैं. शायद इसीलिए इन्द्राणी मुखर्जी को हत्या के लिए आरोपी या दोषी बाद में माना गया, पहले चार शादियाँ करने के लिए उसे तमाम साहित्यिक विशेषणों से नवाज़ दिया गया. हर साहित्य, हर शास्त्र, हर अभिलेख ने इन्हें एक परित्यक्त कुनबे के रूप में स्थापित किया. लेकिन कभी क्या ये सोचा गया कि इनके अन्दर भी स्त्रियों वाले स्वाभाविक गुण होते हैं? क्या कभी इनके गुणों के बारे में भी बताने कि कोशिश की गयी? एक अपवाद रूप में रोमन साम्राज्य में वेश्याओं को समाज में अपेक्षाकृत सम्मानजनक स्थान प्राप्त था जहां वेश्यालय शहर के अन्दर हुआ करते थे. वेश्याओं की माहवारी का खून पवित्र माना जाता था जिससे ज़मीन की उर्वरता बढ़ने की मान्यता थी और इस खून के लिए उन्हें किसान मुंहमांगी रक़म देते थे. लेकिन भावनात्मक रूप से किसी भी समज ने उन्हें वो स्थान नहीं दिया जो कि बतौर इन्सान उन्हें मिलना चाहिए था. हाँ, वेश्यावृति के लिए नित नए तरीके खोजे जाते रहे, जैसे कुलीन वर्गों के लिए तवायफ़ें, धार्मिक रसूख़दारों के लिए देवदासियां, धनाढ्यों के लिए सेविकाएँ और ग़ुलाम वगैरह.

लेकिन मेरी नज़र में एक रंडी या वेश्या एक माँ के बाद दूसरी सबसे अधिक निश्छल प्यार बांटने वाली महिला है. शायद आपकी नज़र में न हो, लेकिन क्या कभी सोचा है आपने, स्त्री को इंसानों में सबसे अधिक भावनात्मक माना गया है और वो साधारणतया धन-दौलत जैसी चीज़ों से प्रभावित नहीं होती है, लेकिन “इमोशनल” तौर पर वो कुछ भी कर सकती है. धन दौलत एक स्त्री के लिए सबसे गौण या दोयम दर्जे की चीज़ होती है. इस बात कि पुष्टि अपने आस पास की स्त्रियों से कर सकते हैं. कभी अपने इर्द गिर्द औरतों को धन से खुश करने कि कोशिश कीजियेगा, बेहद मुश्किल काम है, ये समझ आ जायेगा. उन्हें आपके द्वारा खर्च किये गए पैसे से अधिक आपकी मंशा से ख़ुशी मिलेगी. उनका शरीर उनकी सर्वोच्च संपत्ति होता है, जिसे वो किसी भी कीमत पर नहीं सौंपती. शायद यही वो वजह है जो एक रंडी को मेरी नज़रों में ख़ास बना देती है. जो स्त्री बिना भवनात्मक आदान प्रदान के भी अपने लिए सबसे तुच्छ चीज़ के बदले  आपको आपके मन मुताबिक ख़ुशी और सुकून देती है, वो कोई और कर सकता है क्या? आपकी पत्नी तक बिना उसके मन के आपकी इच्छा को सिर्फ खानापूर्ति में बदल कर रख देती है. लेकिन एक वेश्या आपकी इच्छा को चन्द रुपयों के बदले बखूबी पूरा करती है. एक वेश्या पैसों के बदले प्रेम बांटती है, सिर्फ प्रेम .. कोई और स्त्री कर सकती हो या करती हो, ऐसा संभव नहीं दिखता. एक पुरुष जब वेश्या के पास से लौटता है तो अपने मन के द्वेष-विकार कि जगह संतुष्टि ले कर लौटता है. शायद, ये वेश्याएं न होतीं तो बलात्कारों का आंकड़ा आसमान छू रहा होता, मन की भड़ास को सहज रूप से निकलने का और कोई रास्ता नहीं होता, बीवियां आए दिन और अधिक पिटतीं और अपराधों का स्तर कहीं ऊपर होता. आपकी इच्छा को तवज्जो देने के मामले में एक वेश्या से अधिक निस्वार्थ और “सेल्फ्लेस” एक माँ ही दिखती है. वेश्या को सिर्फ अपने ग्राहक की संतुष्टि से मतलब होता है और माँ को सिर्फ अपने बच्चे की ख़ुशी और संतुष्टि से मतलब होता है, ये बात बदनाम गलियों और बदनाम गालियों में रहने वाली इन औरतों को ख़ास बना देती है. बेहद ख़ास .

आपको शायद ये आपत्तिजनक लगे कि मैं एक वेश्या की तुलना एक माँ से कर रहा हूँ, लेकिन ये सच नहीं है. मैं एक स्त्री की तुलना दूसरी स्त्री से कर रहा हूँ. उस स्त्री से जिसका वजूद तो है, लेकिन कोई सापेक्षिक और सामाजिक रिश्ता नहीं है. वो माँ बनती है, लेकिन सिर्फ अपने बच्चे की, किसी पुरुष के बच्चे की नहीं. वो बहन बनती है लेकिन अपने जैसी किसी और औरत की, किसी पुरुष की नहीं. वो बेटी होती है, लेकिन अपने जैसी किसी वेश्या की बेटी, किसी पुरुष की नहीं. वो भाभी, पत्नी, बुआ, चाची तो कभी नहीं बन पाती. मैंने तुलना की है समाज के दो ध्रुवों की जहां एक स्त्री को सर्वोच्च मान्यता प्राप्त है और दूसरी को सबसे निचली. अगर ये तुलना ग़लत लगे या आपत्तिजनक लगे तो बस इतना समझ जाइयेगा कि आपने एक पुरुष की नज़र से इस पूरे कथन को पढ़ा है, न कि एक इन्सान की नज़र से.. क्योंकि माँ, बेटी, वधू, पत्नी आदि रिश्ते पुरुषों के सापेक्ष हैं, न कि किसी स्त्री के अस्तित्व की पहचान हैं... इसलिए कोशिश करियेगा जब किसी “रंडी” से मिले तो उसे हिक़ारत और उपेक्षा की नज़रों से ना देखें. वो वहाँ “बाई चॉइस” नहीं हैं, वो वहाँ खुद से अधिक इस समाज की वजह से है. हालाँकि मेरा मक़सद वेश्यालयों की तरफदारी या उनकी हिमायत करना नहीं है न ही वेश्याओं और वेश्यालयों का महिमामंडन करना है. वेश्यावृत्ति ग़लत है और बंद होनी चाहिए, लेकिन इसके लिए इसमें लिप्त औरतों को अतिरिक्त दोषी न माना जाये. उन्हें भी वही सम्मान दिया जाना चाहिए जो उनके ग्राहकों यानी पुरुषों को मिलता है. उन्हें भी सम्मान पाने का उतना ही अधिकार है जितना अन्य महिलाओं को है, या शायद उनसे अधिक ही है. वैसे भी अभी इस सिक्के के एक पहलू यानि  भावनात्मक पहलू की बात की है.. उन परिस्थितियों का ज़िक्र कभी और होगा जिनमें एक “रंडी” रहती है, अपनी ज़िन्दगी बसर करती है और अपने बच्चे पालती है. हाँ, आप चाहें तो अंदाज़ लगा सकते हैं  कि किस तरह से एक दस बाई बारह कि कोठारी में छः-आठ औरतें एक साथ  रहती होंगी, किस तरह बीस औरतों का खाना एक आठ बाई पांच के किचन में बनता होगा और किस तरह चौबीस में से अठारह घंटे ग्राहकों के साथ गुज़ारने के बाद वो बचे हुए छः घंटों में बाकी ज़िन्दगी गुज़ारती होंगी.. किस तरह सारे नाते रिश्तेदारों और दोस्तों से उम्मीद ख़त्म होने के बाद ज़िन्दा रहने के लिए आखिरी सहारे की खोज में इन गलियों तक पहुँच जाती हैं, किस तरह अपने गाँव से नौकरी का झांसा दे कर यहाँ लायी जाती हैं और कुछ हज़ार में बेच दी जाती हैं, किस तरह जिस्मफरोशी के बाद जिस्म के पुर्जों की तस्करी के लिए उनके नोचे-खसोटे हुए शरीर को चीर फाड़ दिया जाता है.. किस तरह किसी ग्राहक के लात घूंसे खाने के बाद पुलिस सहायता पाने की जगह थानेदार के साथ बिना पैसे लिए सोना पड़ता होगा, किस तरह कोई ऊँच नीच होने पर सिस्टम भी मदद से इंकार देता है और किस तरह पैंतीस के बाद की उम्र कटती होगी जब ग्राहक उन्हें साथ ले जाने से इंकार देता है या फिर पैंतालीस के बाद उन्हें हाथ पैर तोड़ कर भीख मांगने के लिए मजबूर किया जाता है. किस तरह चौदह की उम्र में ओक्सिटोसिन के इंजेक्शन उन्हें बीद-बाईस का बना देते हैं और किस तरह उन्हें बाईस की उम्र में अपने ग्राहकों से मिलने से पहले अपनी छाती का दूध निचोड़ कर सुखाना पड़ता है जिससे उन्हें “शादी-शुदा” न समझा जाये, किस तरह वो रातें कटी होंगी जब उन्हें पता चलता होगा कि कोई ग्राहक अपनी निशानी उनके अन्दर छोड़ गया है जो उनके जीने का आखिरी सहारा उनका “करियर” ख़त्म कर सकता है.. किस तरह उनकी आमदनी का एक बड़ा हिस्सा चेहरे की बजाय शरीर के “बाकी हिस्सों” के श्रृंगार, सर्जरी  और रख-रखाव पर खर्च हो जाता है और अपने लिए आखिर में एक मजदूर से भी कम पैसे बचते हैं, किस तरह उनके काम की अवैधता का फायदा उठाने के लिए सफेदपोश ग्राहकों के अलावा पुलिस और एनजीओ से ले कर नेता और डॉक्टर तक जीभ लटकाए तैयार खड़े रहते हैं, किस तरह उनके बच्चों को कोई स्कूल गंदगी कह कर दाखिला नहीं देता और उसी “गंदगी” में सड़ने के लिए मजबूर कर देता है. आप और मैं सिर्फ अंदाज़ लगा सकते हैं.. महसूस नहीं कर सकते .. लेकिन फिर भी, महसूस न कर पाएं तो क्या, कम से कम अंदाज़ तो लगा ही सकते हैं न.. शुरुआत करने के लिए इतना ही काफी है.

बाकी आपकी अपनी सोच है और मेरी अपनी.. मने जो है सो तो हइये है.

13 comments:

  1. Shandar post .. dhanywad

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  2. Aurato se he ye duniya h or sehi kha h is post m ki ager p********* presstitute naa hoti to naa jaane aaj her roj kitne he Rape ho rhe hote din dhade...presstitute ko lekr samaj ke jo log gandi gandi tipdiya karte h to m un logo se khena chaungi ki in p********** ki vejhase he aaj aapke gher ki bhen beti gher m or gher ke bahar selamt h to plz presstitute ko gali mat dijiye Q ki wo khud apni merzi se aesi nhi banikhi na khi unki bhi koi majburi rhi hogi to Thank you boliye inko jinki vejha se aapke gher ki bhen bethi bechi hui h bhukhe bhediyo se....shayed mera ye likhna bohet logo ko bura lagega to m un sabse mafi chaungi per sach to yhi h.....Tnku n Very very nice post.
    ��

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    1. देर से देखा, लेकिन शुक्रिया समर्थन का।

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  3. Sach m bhot hi achha likha h apne selut h apko kash har insan ki soch aisi hi ho jaye mere pass shab ni h or kuch bolne k liye

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  4. Sach m bhot hi achha likha h apne selut h apko kash har insan ki soch aisi hi ho jaye mere pass shab ni h or kuch bolne k liye

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  5. This comment has been removed by a blog administrator.

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  6. Baat to bulkul sahi hi
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  7. Bhai shadi karke Ghar bra sakti hai

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  8. Bhai jhoot bolti hai sab Randi Mene kafi bat ki hai

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  9. Hamen bahut dukh hai

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  10. Hamara bhi koi ye etihas nahi

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तह-ए- दिल से शुक्रिया ..आप के मेरे ब्लॉग पर आने का , पढने का ,..और मेरा उत्साहवर्धन करने का। आपके मूल्यवान सुझाव, टिप्पणियाँ और आलोचना , सदैव आमंत्रित है। कृपया बताना न भूलें कि आपको पोस्ट कैसी लगी.