कभी कभी ये आसमान भी,
ज़मीन से बिछड़ जाता है,
मैं घंटों तक,
देखता रहता हूँ इसको,
चलता रहता है,
लेकिन दूर दूर से,
पास नहीं आता,
कितना भी बुलाओ,
दूर ही रहता है,
अपने बदन पर हजारों ,
पैबंद टिकाये हुए,
और सबसे मज़े की बात,
चाहे जितना उजाला हो,
या अँधेरा,
वो पैबंद चमकते रहते हैं,
सोचता होगा ये आसमान भी,
ये अकेला है,
या कोई और भी होगा,
इसके जैसा ,
रोज़ जीने वाला,
रोज़ मरने वाला,
हर दिन में दो बार,
ख़ुदकुशी करने वाला,
और,
जवाब खोजते खोजते ,
सो जाता है,
ठंडी ज़मीन पर,
नंगे बदन, बिना ओढ़ने के .....
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