किस ईमान की बात करता है खुदा तू ?
मेरे ईमान को तो कुत्ते नोच के खा गए है,
जिस्म से खून चाट गयीं हैं बिल्लियाँ ,
और हड्डियों में बेईमानी के दीमक समा गए है
कुफ्र और काफ़िर सुन कर हंसी आती है बहुत,
गोया सब हज कर के वापस आ गए हैं ,
उसूलों की तो तुम बात भी मत करना ,
वो नाराज़ हो मुझसे, लौट वापस अपने जहां गए हैं
एक हाथ उठा नहीं किसी की मदद को ,
वो तालियाँ बजाने वाले हाथ कहाँ गए हैं, उनकी आँखों का पानी नहीं सिर्फ रंग बचा है ,
और अब वो अपनी तबियत की खैर मनाने काबा गए हैं,
नहीं हैं अब मुझमें जज्बातों की खुशबू,
एहसासात मेरे कौन जाने , कहाँ गए हैं ... औकात फिर भी मेरी कुछ नहीं उन जमातों के आगे ,
ज़मीन क्या जो आसमान भी घर में सजा गए हैं,...