कैसा तेरा जहाँ, कैसे रवायत तेरी खुदाई में है ,
मिलने पर बगावत है, जशन तो जुदाई में है,
चाहा था नाप ले पल में सारा आकाश उड़कर,
पर कटा कर बैठे हैं, ख्वाबों की कीमत चुकाई यूं है,,,
बहार ठंडा पड़ा है सूरज,आगोश में है आज ज्वालामुखी,
चरागों की आंच भी सहन नहीं होती है अब जिगर में ,
वाह मेरे मौला ,क्या करम किये हैं तूने मुझ पर,
शोले थमा कर हाथों में , लौ ये तूने बुझाई यूं है ,..
हर पल देखता हूँ आखो के सामने उस चेहरे को
हर पल सोचता हूँ उस चक चौबंद पहरे के बारे में
पहरा हटता हा भी नागवार लगता है दिल को ,
रिहाई तो तेरी कैद में बसी है, वरना कैद तो रिहाई में है ,
महफ़िल ऐसी के कोई आ नहीं सकता दर के इस पार ,
महफ़िल ऐसी के मैं जा नहीं सकता घर के उस पार,
जाना ही कैसा , गर तू नहीं हो वहा पर, कहते हैं लोग,
लगता नहीं सच ,दिल नासमझ हैं जो महफ़िल उसने सजाई यूं है
मिलने पर बगावत है, जशन तो जुदाई में है,
चाहा था नाप ले पल में सारा आकाश उड़कर,
पर कटा कर बैठे हैं, ख्वाबों की कीमत चुकाई यूं है,,,
बहार ठंडा पड़ा है सूरज,आगोश में है आज ज्वालामुखी,
चरागों की आंच भी सहन नहीं होती है अब जिगर में ,
वाह मेरे मौला ,क्या करम किये हैं तूने मुझ पर,
शोले थमा कर हाथों में , लौ ये तूने बुझाई यूं है ,..
हर पल देखता हूँ आखो के सामने उस चेहरे को
हर पल सोचता हूँ उस चक चौबंद पहरे के बारे में
पहरा हटता हा भी नागवार लगता है दिल को ,
रिहाई तो तेरी कैद में बसी है, वरना कैद तो रिहाई में है ,
महफ़िल ऐसी के कोई आ नहीं सकता दर के इस पार ,
महफ़िल ऐसी के मैं जा नहीं सकता घर के उस पार,
जाना ही कैसा , गर तू नहीं हो वहा पर, कहते हैं लोग,
लगता नहीं सच ,दिल नासमझ हैं जो महफ़िल उसने सजाई यूं है
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