थक गया हूँ तेरी यादों से भागते भागते ,
ना जाने कब रात होगी और ये परछाइयां खत्म होंगी,
हर पल साथ चलता है इक हुजूम मेरे अगल बगल ,
पर इक तेरा साथ है जो मयस्सर ना हुआ,
ना जाने कब तुम आओगे और ये तनहाइयाँ खत्म होंगी,,
दिन रात खलिश सा खलता है ज़ेहन में कुछ,
दिन रात मुझसे मेरी बेताबी ये कहती है,
तुम आओगे तो चैन मिले दो पल को ,
कब तलक यूं इंतज़ार करूँगा ना जाने ,
ना जाने कब वो पल आएगा और ये बेताबियाँ खत्म होंगी,
जियें क्यूं अब ये सोचता हु अक्सर ,
आखिर क्यूं, ज़िन्दगी को तेरा साथ नहीं मयस्सर,
चौथे पहर तक आसमान की सिलवटें गिनता हूँ,
तारों को गिरते पड़ते , जलते बुझते देखता हूँ ,
ना जाने कब आँख लगेगी और ये करवटें -अंगडाइयां कह्तं होंगी ,
ये तुम्हारा ही साया है जो आज तक मुझ पर छाया है,
बेवजूद हूँ, बावजूद इसके मेरी भी इक पहचान है ,
लोग कहता हैं, ये तुम्हारा नाम है,
शायद अब नाम ही बचा है , जिस पर हक है मेरा , क्या पता ?
ना जाने कब तक चलेगा ये सिलसिला , और ये रुसवाइयां ख़त्म होंगी,
अब तो अमावस की रौशनी भी जलने लगी है आँखों को,
अँधेरा भी गर्म उजाले सा पिघलने लगा है पलकों क नीचे ,
मानो आँखों में ताज़ा लावा सा आन पड़ा हो ,
जीना भी सिर्फ इक ज़िम्मेदारी सा लगता है,
तुम्हारी यादों के काफिले को मंजिल दिखने की,
ना जाने कब तुम मंजिल पर दिखोगे और ये जिम्मेदारियां ख़त्म होंगी,
बरसों से चल रहा हूँ एक अजनबी सी राह पर,
सफ़र है, हमसफ़र नहीं,हमसफ़र तो बनते हैं राह में ,
पर मंजिल अकेले ही बुलाती है, सुना है ,
इक मौत ही है जिसकी मंजिल ही हमसफ़र बनाना है
ना जाने तुम तुम कब मौत बनोगे और ये दुश्वारियां ख़त्म होंगी ,,
ना जाने कब रात होगी और ये परछाइयां खत्म होंगी,
हर पल साथ चलता है इक हुजूम मेरे अगल बगल ,
पर इक तेरा साथ है जो मयस्सर ना हुआ,
ना जाने कब तुम आओगे और ये तनहाइयाँ खत्म होंगी,,
दिन रात खलिश सा खलता है ज़ेहन में कुछ,
दिन रात मुझसे मेरी बेताबी ये कहती है,
तुम आओगे तो चैन मिले दो पल को ,
कब तलक यूं इंतज़ार करूँगा ना जाने ,
ना जाने कब वो पल आएगा और ये बेताबियाँ खत्म होंगी,
जियें क्यूं अब ये सोचता हु अक्सर ,
आखिर क्यूं, ज़िन्दगी को तेरा साथ नहीं मयस्सर,
चौथे पहर तक आसमान की सिलवटें गिनता हूँ,
तारों को गिरते पड़ते , जलते बुझते देखता हूँ ,
ना जाने कब आँख लगेगी और ये करवटें -अंगडाइयां कह्तं होंगी ,
ये तुम्हारा ही साया है जो आज तक मुझ पर छाया है,
बेवजूद हूँ, बावजूद इसके मेरी भी इक पहचान है ,
लोग कहता हैं, ये तुम्हारा नाम है,
शायद अब नाम ही बचा है , जिस पर हक है मेरा , क्या पता ?
ना जाने कब तक चलेगा ये सिलसिला , और ये रुसवाइयां ख़त्म होंगी,
अब तो अमावस की रौशनी भी जलने लगी है आँखों को,
अँधेरा भी गर्म उजाले सा पिघलने लगा है पलकों क नीचे ,
मानो आँखों में ताज़ा लावा सा आन पड़ा हो ,
जीना भी सिर्फ इक ज़िम्मेदारी सा लगता है,
तुम्हारी यादों के काफिले को मंजिल दिखने की,
ना जाने कब तुम मंजिल पर दिखोगे और ये जिम्मेदारियां ख़त्म होंगी,
बरसों से चल रहा हूँ एक अजनबी सी राह पर,
सफ़र है, हमसफ़र नहीं,हमसफ़र तो बनते हैं राह में ,
पर मंजिल अकेले ही बुलाती है, सुना है ,
इक मौत ही है जिसकी मंजिल ही हमसफ़र बनाना है
ना जाने तुम तुम कब मौत बनोगे और ये दुश्वारियां ख़त्म होंगी ,,
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