Friday 26 August 2011

कुछ टूटी फूटी नज्में ...(part 1)

कुछ टूटी फूटी नज्में ...(part 1)

by Nitish Mantri Singh on Friday, August 26, 2011 at 7:38pm
१) गवाह  है इतिहास लहू की बहती धारो का ,
धेहते महलों, मीनारों का ,छेखों का पुकारों का ,
गर इसने कुछ नहीं देखा तो वो है,
जूनून प्यार का , और जज़बा वफादारो का ..

२)नाकाम रही जंग जीतने की हर कोशिश
कमबख्त ज़िन्दगी ने हरा दिया ,
बस जीत के दर पे पहुंचे ही थे ,
के बेमुर्रव्वत ज़िन्दगी ही हार गयी ,,

३)अदालत -ए - दिल में सुनवाई की रवायत नहीं होती
सीधे फैसले होते हैं ,सुबूत जुटाने की कवायद नहीं होती ,
मुहब्बत को तो मानता है खुदा भी पाक,
वरना आशिकी में उस परवरदिगार की इनायत नहीं होती,

४) शिकायत नहीं तुझसे कोई , तेरी जुस्तजू भी नहीं ,
शिकवा तो जिंदगी से भी ना हुआ  कभी
जाने क्या वजह है जो मेरी ज़िन्दगी में तू नहीं ,
शौक कहो इसे या मेरा गुमान कहो ,
के तेरे बाद मेरी ज़िन्दगी में कोई आरजू नहीं

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